परिचय
दोस्तों मुकेश चंद्राकर हत्या काफी चर्चा में इस समय पर है, जिसमें बोला जा रहा है कि किस तरह से एक पत्रकार की हत्या कर दी जाती है। उसके बाद उसे सेफ्टीक टैंक में चुनवा कर कंक्रीट की स्लैब चढ़ा दी जाती है। आप सोचिए कितनी बेरहमी से पत्रकारिता की हमारे देश में कत्ल किया जाता है जिसमें लोग इस बात को जरा सा भी नहीं सोचते कि इसका उनको क्या सजा मिलेगी, क्योंकि यह भी उनको पता है कि पैसे खिलाकर वह दो दिन में बेल पर बाहर आ जाएंगे। 2023-24 में काफी बड़े-बड़े स्टोरी हमें देखने को मिला जिनमें पुणे पोर्श मर्डर केस, मुंबई होर्डिंग कैस, पूजा खांडकर आईएएस केस इत्यादि काफी सुर्खियां बटोरी जिसमें खूब मीडिया ट्रायल चला, लेकिन उसके बावजूद हमारी सोसाइटी पर कोई खास असर होता नहीं नजर आ रहा है क्योंकि उसके बाद भी ऐसी अप्रिय घटनाएं लगातार देखने को मिल रही है। शायद मुकेश चंद्राकर केस में भी वैसा ही होगा जिसमें नेता राजनीति करेंगे, मीडिया टीआरपी बटोरेगी और पब्लिक एंटरटेनमेंट करेंगे। लेकिन सभी को समझना चाहिए, कि यहां पर क्रोनोलॉजी कैसे आगे बढ़ रही है जिसमें कल मुकेश चंद्राकर था और कल कोई दूसरा होगा। इसलिए इस विषय पर बोलना जरूरी हो जाता है क्योंकि जिस दिशा में हमारे देश की पॉलिटिक्स और इकोनॉमी जा रही है, उससे यही लगता है कि सच बोलने वालों को जान से ही मार दिया जाएगा।
पूरा मामला क्या है ?
अगर आप मुकेश चंद्राकर के बारे में नहीं जानते हैं तो मैं आपको बता दूं कि वह छत्तीसगढ़ में “बस्तर जंक्शन” नामक एक यूट्यूब चैनल चलते थे, जिस पर उनके 1.9 मिलियन सब्सक्राइबर थे। इस पर वह पुल निर्माण, रोड निर्माण, स्कूल निर्माण इत्यादि को लेकर जिस तरह से बस्तर में घोटाले होते हैं, उसको लोगों को वीडियो से बताते थे। इसी क्रम में उनके वीडियो से बस्तर के ही एक लोकल बाहुबली ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के खिलाफ बहुत सारी इन्वेस्टिगेशन खुल गए। सुरेश चंद्राकर खुद को सामाजिक कार्यकर्ता भी बताते हैं , मगर वह कुल मिलाकर एक सरकारी दलाल है, जो स्कूल बनाने, पुल बनाने, बिल्डिंग बनाने इत्यादि के लिए ठेकेदारी लेते थे। पूरी खबर यह है कि जब सारी दुनिया नया साल मना रही थी, तब पत्रकारिता का कत्ल किया जा रहा था। इसमें सुरेश चंद्राकर के साइड से दो लोग (महेंद्र और रितेश) उनको बुलाते हैं और बातचीत करते हैं। धीरे-धीरे बातचीत बहस में बदल जाती है और बहस झड़प में बदल जाती है। इसके बाद एक भारी सामान से मुकेश के सर पर मर जाता है, जिसमें उसकी मौत हो जाती है। उसके बाद इसे छुपाने के लिए पास के ही सेप्टिक टैंक में मुकेश चंद्राकर को दफना दिया जाता है और उसके बाद कंक्रीट से उसकी सेलिंग कर दी जाती है। क्रिमिनल को लगता है कि उन्हें तो 2 दिन के बाद ही बेल मिल जाती है, इसलिए वह कोई अपराध करने से भी नहीं हिचकते हैं। आज के समय में यही देखा जाता है कि अगर कोई अपराधी अरेस्ट भी हो जाए, तो उसे दो दिन में ही बल मिल जाती है। यहां पर जब मुकेश चंद्राकर के रिलेटिव ने उसकी खोजबिन शुरू की और पुलिस की मदद ली, तब वहां पर पता चला कि इनका अंतिम लोकेशन एक फार्म हाउस पर था। उसके बाद पुलिस जब फार्म हाउस में छानबीन की, तो वहां एक स्लैब मिला जिसमें मुकेश को चुनवा दिया गया था। उसे स्लैब को तोड़कर देखने पर मुकेश की लाश वहां पर दफन मिली, जो बहुत बुरी स्थिति में थी। यहां पर प्रॉब्लम सिर्फ हत्या की ही नहीं है, क्योंकि 150 करोड़ की आबादी वाले देश में मर्डर होना तो आम बात है। यहां पर प्रॉब्लम यह है कि इंटरनेशनल जर्नलिज्म रैंकिंग में हमारे देश की जिस तरह दुनिया भर में किरकिरी होती है तो लोग यही मानते हैं कि हमारी रैंक तो पाकिस्तान से भी आगे है और यह सब तो हमें नीचा दिखाने के लिए किया गया है। तब उन्हें लगने लगता है कि हमारा देश तो मदर ऑफ डेमोक्रेसी है और यहां पर हर कोई अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र है।

कैसे हो रही है पत्रिकारिता की हत्या ?
हमलोग जर्नलिज्म के बारे में अक्सर बात करते नेशनल टीवी पर आए पैनेलिस्ट से सुनते रहते हैं। यहां पर यह समझना भी जरूरी है कि यह हत्या एक तो ऊपर ही ऊपर से कर दी जाती है। मतलब यहाँ बड़े-बड़े चैनलों की एडवरटाइजिंग बंद कर दी जाती है और बड़े-बड़े सभी पत्रकारों को खरीद लिया जाता है। ऐसे में एक तरीका तो यह होता है जर्नलिज्म की हत्या करने का । वही दूसरा जो तरीका होता है, उसमें जो लोग छोटा पब्लिकेशन चलते हैं और डिजिटल मेडियम की सहायता ले रहे हैं, तो इनको कैसे मुंह बंद किया जाए उसके बारे में आपको बताते हैं। आप जरा सोचिए कि मेट्रो में बैठकर कोई पत्रकार बस्तर जाकर तो जांच नहीं करेगा। इसलिए यहां पर डिजिटलाइजेसन बहुत मददगार साबित होती है, जिससे आज के समय पर हर किसी के पास अपनी आवाज उठाने का साधन है। ऐसे साधन आज से 10 -15 साल पहले नहीं होते थे। तब छोटे-छोटे लोकल रिपोर्टर्स हुआ करते थे, जो लोकल न्यूज़ को नेशनल टीवी पर पहुंचते थे और उससे उनका खर्च चलता था। लेकिन जब से यूट्यूब आया, तब से यह लोकल पत्रकार भी अपना यूट्यूब चैनल चलाने लग गए। यूट्यूब की यही खासियत है की इसे चलाने के लिए किसी को कोई बड़ा सेटअप तैयार करने की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए कोई राजनीतिक सपोर्ट की भी जरूरत नहीं होती है। आप सिर्फ कैमरा और माइक लेकर रिपोर्टिंग कर सकते हैं। इसके कारण निष्पक्ष पत्रकारिता को बढ़ावा मिला है। मुकेश चंद्राकर एनडीटीवी चैनल में भी काम कर चुके थे और अपना भी एक चैनल बस्तर जंक्शन नाम से चलाते थे। धीरे-धीरे यह चैनल अच्छा काम करने लगा। इसकी वीडियो के व्यूज बढ़ने लग गए। 1.8 मिलियन सब्सक्राइबर अच्छा माना जा सकता है एक लोकल चैनल के लिए। मुकेश चंद्राकर मर्डर से एक संदेश जाता है कि कैसे हम इन पत्रकारों का भी मुंह बंद कर सकते हैं और उसका तरीका है कि हम उन्हें मार ही डालें।
बोला जा रहा है कि बस्तर में 50 करोड़ के बजट का एक रोड कंस्ट्रक्शन था, जिसे बढ़ाकर 120 करोड़ कर दिया गया था बिना काम में कुछ परिवर्तन किए हुए ही। तो काम में कोई बदलाव नहीं हुआ लेकिन यहां पर बजट 50 करोड़ से 120 करोड़ चेंज हो जाता है। इससे पता चलता है कि घोटाला सरकारी प्रोजेक्ट में कितने बड़े स्तर पर हो रहा था । इसे जब लोकल पत्रकार एक्सपोज करने की कोशिश करता है, तो उससे घोटालेबाजों की नींद उड़ जाती है। दरअसल नक्सलियों को निकालना बड़ी बात नहीं है। यहां पर बात यह है जब हम किसी नक्सली को भगा भी देते हैं, तो विकास के नाम पर जो स्कैम होता है, उसकी वजह से यह नक्सली वापस आ जाते हैं। ऐसे में नक्सलवाद को बंदूक से नहीं बल्कि विकास से हराया जा सकता है। मगर इन नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में इस तरह का विकास हो रहा है कि जो भी बड़े-बड़े ठेकेदार हैं वह पैसा खा जाते हैं, जिससे लोगों का विकास नहीं हो पता है। इसके बाद वहां फिर से नक्सलवाद रिटर्न हो जाता है।
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जमकर राजीनीति हो रही है ?
यहां पर सुरेश चंद्राकर बहुत ही महत्वपूर्ण शख्स हैं जिनका नाम इस पूरे वारदात में आ रहा है ।बस्तर जैसे एरिया में इन्होंने अपनी शादी में हेलीकॉप्टर और रुस्सियन डांसर मंगवाया था। बोला जा रहा है कि इन्होंने अपनी शादी में 10 से 12 करोड रुपए खर्च किए थे। इनके संबंध कांग्रेस से भी थे जिसमें इन्हें कंस्ट्रक्शन और माइनिंग प्रोजेक्ट कांग्रेसी सरकार से ही मिले थे। इस पर अब भूपेश बघेल से पूछा जा रहा है। इससे पहले यह छत्तीसगढ़ में एससी विंग के वाइस प्रेसिडेंट भी रह चुके हैं। इसके बाद कांग्रेस और बीजेपी में आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गया है। कांग्रेस कह रही है कि भाजपा के शासन में छत्तीसगढ़ क्या-क्या हो रहा है और बीजेपी कह रही है कि यह आदमी तो कांग्रेस के टाइम का ही है।
सुरेश चंद्राकर चाहे किसी भी पार्टी से जुड़े हो, पर उन्हें दंड मिलना ही चाहिए। यहाँ जस्टिस सिस्टम पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि हाई प्रोफाइल केस में भी दोषियों को छोड़ दिया जाता है। यहां पर अतुल-सुभाष के केस में भी उसकी पत्नी को जमानत दे दी गई है, पुणे पोर्श केस में भी सभी को बेल मिल गई और मुंबई होल्डिंग केस में भी सभी को बेल मिल गई है। अगर इस तरह के केस गलती से हाईलाइट भी हो जाते हैं, तो उसमें भी किसी को दंड नहीं मिलता है। ऐसे में क्यों ना इसी केस में दोषियों को सजा देती जाए क्योंकि बुलडोजर और जेसीबी एक्शन लेकर दोषियों की टीन शेड की छत गिराकर लोगों का गुस्सा ठंडा करने से लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। इसलिए यहां मामला बहुत बड़ा हो गया है की इसमें न सिर्फ एक पत्रकार की हत्या की गई है, बल्कि हमारे देश में सच्चाई की भी हत्या हुई है। आप देखते हो कि बिहार में लगातार पुल गिर जाता है तो कहीं सड़क हाथ से उखड़ जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जमीनी स्तर पर कोई जांच ही नहीं होती और रिपोर्टर्स को खरीद लिया जाता है या मार दिया जाता है। ऐसे में ग्राउंड से सच्चाई सामने नहीं आ पाती है जब मुकेश चंद्राकर जैसे लोकल जर्नलिस्ट का इस तरह मर्डर हो जाता है। 2023-24 में 5 जर्नलिस्ट मारे गए हैं जबकि 226 को टारगेट किया गया था 2024-25 में यह आंकड़ा कितना बदलेगा, उसे देखना दिलचस्प होगा। यहां पर जो 226 पत्रकारों को पर हमला किया गया था उसमें दिल्ली पहले नंबर, पश्चिम बंगाल दूसरे, मणिपुर तीसरे, चौथे केरल, पांचवा झारखंड, छठा महाराष्ट्र, सातवां तेलंगाना, आठवां असम, नौवां और बिहार दसवां है। ऐसे में यहां पर दिल्ली भी है, यूपी है वेस्ट बंगाल भी है, मणिपुर भी है, केरल भी है, झारखंड भी है। इससे लगता है कि सभी राजनीतिक दल इसमें मिले हुए हैं। तो यहां पर आप कहोगे कि यह सब बीजेपी करा रहा है या आम आदमी पार्टी करा रहा है या कांग्रेस रहा है, जो की सही नहीं होगा। सच तो यही है की जो जहां पर जो भी पावर में है, वह पत्रकारों को चुप करने की कोशिश करता है ।
निष्कर्ष
अब हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह की पत्रकारिता को सपोर्ट करते हैं। हम खुद को धोखे में रखकर रात के 9:00 बजे न्यूज़ चैनल्स पर जो चिल्लम- चिल्ली मचाई जाती है, उसे देखकर भ्रम में रहते हैं कि हम विश्व गुरु बन गए हैं।आपका इस विषय पर क्या सोचना है, हमें जरूर बताइएगा और अपना सुझाव व शिकायत हमे मेल कर सकते हैं।
आज का सवाल
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का रैंक कौन सा है ?
A. 95
B. 132
C. 146
D. 159
इसका सही जवाब आपको कल के ब्लॉग में मिलेगा ।