परिचय
Rupee vs Dollar: दोस्तों पिछले दिनों से लगातार “रुपए” जिस तरह से गिर रहा है, उसका अनुमान शायद किसी अर्थशास्त्री ने नहीं किया होगा। इस समय पर तो यह डॉलर के मुकाबले 86 रुपए को भी क्रॉस कर लिया है। अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि भारतीय मुद्रा बहुत तेजी से गिर रहा है। अक्सर देखा जाता था कि जब भी रुपए कमजोर होता था, तो आरबीआई उसमें हस्तक्षेप करके उसे रोकने की कोशिश करता था। मगर इस बार ऐसा क्यों नहीं हो रहा है कि आरबीआई भी रुपए को गिरने से रोक नहीं पा रहा और इससे आम लोग कैसे प्रभावित होंगे, तो यह सारी बातें आज आपको बताएंगे। चलिए शुरू करते हैं।
पूरा मामला क्या है ?
देखिए भारतीय रुपए में लगातार गिरावट हो रही है। इसके बहुत से कारण है, जिसे मैं आगे आपको काफी विस्तार से बताऊंगा। मगर ज्यादातर देखा गया है कि अमेरिका में जॉब का जो आंकड़ा आए हैं वह उम्मीद से कहीं बेहतर है। इसका मतलब यह हुआ कि एफबीआई शायद उतना इंटरेस्ट रेट कट नहीं कर करें जितना उम्मीद लगाई जा रही थी । इसके अलावा जिस तरह से कच्चे तेल के दाम बढ़ते जा रहे हैं और भारत में से विदेशी निवेशक पैसा निकाल रहे हैं। तो इसकी वजह से रुपए लगातार कमजोर हो रहा है। इस बार यह भी बोला जा रहा है कि आरबीआई भी इसे रोक पाने में सक्षम नहीं है। इस समय डॉलर 86.83 रुपए के बराबर हो गया है। इसे आप यह समझ लीजिए कि एशिया में बाकी के जितने भी मुद्राएं हैं चाहे वह थाईलैंड का भात हो या फिलिपींस का फेस्को हो या मलेशिया का रिंगिट। तो इन मुद्राओं में गिरावट सिर्फ 0.3% से 0.6% तक ही हुआ है। मगर भारतीय रुपए में ज्यादा गिरावट देखी जा रही है।

रुपए क्यों कमजोर हो रहा है?
देखिए विदेशी निवेशक जब हमारे स्टॉक मार्केट में पैसा एफआईआई के द्वारा और एफडीआई के द्वारा लगाते हैं, तब वह हमारी इकोनॉमी के लिए अच्छा होता है। मगर ऐसा नहीं होता है तो इसके उल्टे चीजें होने लगती है और इसमें विदेशी निवेशकों का बड़ा योगदान रहता है। अब तक 2.8 बिलियन डॉलर पैसा विदेशी निवेशकों ने निकाल लिया है क्योंकि इस समय राजनीतिक और अस्थिरता बढ़ती जा रहा है, जिससे डॉलर मजबूत हो रहा है। तो ऐसे बहुत कुछ वजह बताएं जा रहे हैं।
इसके अलावा क्रूड ऑयल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, जो इस समय 80 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गया है। इसके पीछे की वजह देखें तो अमेरिका के द्वारा रूस पर लगाया गया प्रतिबंध भी बड़ा कारण माना जा रहा है। इसलिए भी रुपए लगातार गिर रहा है।
इसके अलावा जैसे भारत सरकार बांड निकालती रहती है, तो वैसे ही अमेरिका की फेडरल बैंक भी बांड निकालती रहती है। इसका यील्ड भी जंप हुआ है। तो जब यील्ड बढ़ता है, तो लोग भारत में पैसा न लगाकर अमेरिका में लगा रहे हैं। इसके चलते भारत से जनवरी में कुल 4.02 बिलियन डॉलर निकाल लिया गया है। तो यह बड़ा कारण बताया जा रहा है जिससे भारतीय रुपए में कमजोरी देखने को मिल रही है।
बोला जा रहा है अमेरिका में जॉब रिपोर्ट मार्केट के उम्मीद से भी ज्यादा है। वहां पर अनइंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 4.2% से 4.8 प्रतिशत हो गया है। ऐसे में इस समय पर अमेरिका के इकोनॉमी सुधर रही है। तो जब भी अमेरिका की इकोनॉमी अच्छी होगी, तो डॉलर में सुधार होगा। ऐसे में जाहिर सी बात है की जब डॉलर मजबूत होगा तो बाकी के करेंसी कमजोर होने लगेंगे।
इंडियन इकॉनमी के लिए कितना खतरनाक है ?

अब आपको बताते हैं कि इससे इंडियन इकॉनमी पर क्या असर पड़ेगा। देखिए जाहिर सी बात है कि जब इंडियन रुपए कमजोर होगा, तो उससे हमारा इंपोर्ट बिल बढ़ जाता है। इससे इंपॉर्टेड समान महंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि इस समय पर एक डॉलर 80 रूपए के बराबर है। तो अगर आपको $1 का कोई सामान अमेरिका में खरीदना है, तो आप ₹80 पे करोगे।
अब मान लीजिए की एक डॉलर इस समय ₹90 हो जाए, तो आपको सामान तो वही मिल रहा है, लेकिन अब आपको ₹90 पे करना पड़ रहा है। इसका मतलब इससे इंपॉर्टेड चीज महंगी हो जाती है। इससे क्रूड ऑयल, फर्टिलाइजर्स, पल्सेस नेचुरल गैस इत्यादि के दाम बढ़ने लग जाते हैं और सबसे ज्यादा असर तो क्रूड ऑइल्स और गैस पर ही पड़ता है क्योंकि भारत का 88% खपत होने वाली चीजें इम्पोर्टेड ही होती है।
इंडियन रुपए कमजोर जितना होता जाएगा, हमारे लिए उतना ही ज्यादा चीजें महँगी होती जाएगी। जिससे अंतिम रूप से इसका असर महंगाई पर देखने को मिलेगा क्योंकि जब क्रूड ऑयल के दाम बढ़ेंगे तो जो हम ट्रांसपोर्ट करते हैं, वह महंगा हो जाएगा। इससे हम तक आने वाली सभी चीज महंगी हो जाएगी। फिर जब इंपोर्ट महंगा होगा तो ट्रेड डिफिसिट भी बढ़ जाएगा। मतलब जो भी हम इंपोर्ट और एक्सपोर्ट करते हैं तो उसके बीच का अंतर ज्यादा हो जाएगा, जो नेगेटिव में चला जाएगा और जो सेक्टर इंपोर्ट डिपेंडेंट है जैसे एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स और ट्रांसपोर्टेशन इत्यादि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इसके अलावा बहुत सारी कंपनियां बहरी देशों से कर्ज लेते हैं। जिनमें अमेरिका, लंदन, दुबई हो गया। तो वहां के कर्ज को चुकाने भी हैं, तो वह महंगे हो जाएंगे। उससे भारत पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।
इसके अलावा मान लीजिए कि आपको विदेश पढ़ने या घूमने जाना है। तो वहां आपको ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे क्योंकि रुपए कमजोर हो रहा है। तो यह सारी चीज महंगी हो जाती है।
मगर रुपए के कमजोर होने के कुछ फायदे भी हैं क्योंकि इससे हमारा एक्सपोर्ट बढ़ जाता है। दूसरा जो फायदा होता है कि हम इंपोर्ट कम करते हैं, जिससे घरेलू उद्योग धंधों को फायदा होता है। लेकिन बहुत ज्यादा रुपए कमजोर होने पर इसका असर हमारे विकास पर भी पड़ता है क्योंकि जब महंगाई बढ़ने लगती है तो जाहिर सी बात है कि इंपोर्ट महंगा हो जायेगा और महंगाई दर भी बढ़ेगी। तो तब भी आरबीआई ब्याज दर कम नहीं करेगी। आपने देखा होगा मॉनेटरी पॉलिसी रिपोर्ट में डिसाइड होता है कि इंटरेस्ट रेट कम होगा या नहीं। लेकिन इसी तरह से जब महंगाई बढ़ता रहे और आपको याद होगा की जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े भी कमजोर आए थे, तो ऐसे में लगता नहीं की इंटरेस्ट रेट कम होंगे।
आरबीआई क्या कर रही है ?
आपको उदाहरण के साथ बताता हूं कि भारत का जो फॉरेक्स रिजर्व है, वह एक समय पर 700 बिलियन डॉलर क्रॉस कर लिया था। यहां पर देखिए आरबीआई क्या करती है जैसे मान लीजिए रुपए कमजोर हो रहा है, तो इसका मतलब क्या है कि रुपए की सप्लाई बढ़ रही है और डॉलर की सप्लाई कम हो रही है। चूँकि डॉलर भारत से बाहर जा रहा है, तो इस स्थिति में आरबीआई फॉरेक्स रिजर्व में जो डॉलर पड़ा होता है, उसे मार्केट में बेच देता है और उसके बदले रुपए खरीद लेती है। इससे मार्केट में डॉलर की बाढ़ आ जाती है और रुपए की कमी हो जाती है। इससे रुपए खुद मजबूत हो जाती है। ऐसी स्थिति आरबीआई अपनाती रहती थी कि जिससे रुपए बहुत कमजोर ना हो जाए।
लेकिन इस समय पर जिओ पॉलीटिकल फैक्टर्स इतना प्रभाव डाल रहा है कि उसके चलते आरबीआई भी कुछ नहीं कर सकती है। आरबीआई चाहे अपना पूरा फॉरेक्स रिजर्व भी खाली कर दे तो भी इस समय रुपए कमजोर ही होता रहेगा। जब रुपए 86 के पास गया, तब बहुत सारे एक्सपर्ट सोच रहे थे कि आरबीआई इंटरफेयर करेगा और रुपए को गिरने से बचाएगा। मगर आरबीआई इस पर इस समय चुप्पी साध रखी है।
आपको एक उदाहरण देकर बताता हूं कि एक समय था जब हमारा फॉरेक्स रिजर्व 700 बिलियन डॉलर के पार चला गया था। उसके बाद रूपए को गिरने से रोकने के लिए आरबीआई इसमें हस्तक्षेप किया और 60 बिलियन डॉलर उसने अपने फॉरेक्स रिजर्व में से निकाला। मगर इसके बावजूद भी जब आज हमारा फॉरेक्स 640 बिलियन डॉलर ही बचे है और उन्होंने 60 बिलियन डॉलर खर्च कर दिए, लेकिन तब भी वो रुपए को कमजोर होने से नहीं रोक पा रहे हैं। इसलिए अब यही देखा जा रहा है कि आरबीआई भी कुछ नहीं कर पाएगी।
क्या रुपए आगे भी गिरता रहेगा ?
रुपए की वर्तमान स्थिति को देखकर तो यही लगता है कि रुपए आगे भी गिरेगा। अगर आप पिछले कुछ वर्षों से रूपए की वार्षिक गिरावट देखें, तो वह 2 से 5% तक रहा है। 2019 से औसत वार्षिक गिरावट दर 3.3 प्रतिशत रहा है। तो मान लीजिए 2025 में भी 3.3 प्रतिशत गिरावट रहता है, तो रुपए ज्यादा से ज्यादा 88 तक पहुंच जाएगा। लेकिन कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि रुपए में 10% तक की गिरावट हो सकती है। ऐसे में रुपए 95 तक भी पहुंच जाएगा। देखिए यह तो अब समय ही बताएगा। अगर जियो पॉलीटिकल स्टेबिलिटी दुनिया में आ जाती है और ट्रंप जो बोल रहे हैं कि हम टैरीफ लगा देंगे और सैंक्शन लगा देंगे, तो अगर वह ऐसा कर देंगे तब तो रुपए कमजोर और हो जाएगा। मगर उनमें बुद्धि आ गई की चीजों को संभाल कर ले चलना है तब चीजें संभल जाएगी। अब देखना होगा आगे क्या होता है।
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