
परिचय
नमस्कार दोस्तों, दोस्तों हमारे स्कूल एजुकेशन की एक पॉलिसी बहुत से लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती थी जो no detention policy है । मैं अपनी स्टोरी बताता हूं कि जब 2015-16 में मैं भी यूपीएससी की तैयारी करता था तो उस समय पर टफ कंपटीशन के चलते खुद को ऊर्जावान और उत्साहित रखने के लिए NGO जाया करता था और तब मुझे एहसास हुआ कि जो बच्चे सरकारी स्कूल में मान लीजिए आठवीं के छात्र हैं और उनसे जब भी मैं दूसरी-तीसरी-चौथी कक्षा का सवाल पूछता था तो वह उसे नहीं बता पाते थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि जब वह आठवीं में पढ़ता है, तो चौथी क्लास का सवाल भी हल ना कर पाए। तब मुझे ऐसा लगने लगा था कि इसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं नो डिटेंशन पॉलिसी है। मतलब बच्चों को फेल होने पर उन्हें फेल किया ही नहीं जाता है।अगर आपने एक बार पहली कक्षा में एडमिशन करा लिया तो बीच में कहीं नहीं फसोगे और आठवीं पास करके ही निकलोगे। ऐसी स्थिति तब की है और ऐसा लगता था कि आठवीं के बाद उन बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। इसलिए जरूरी था कि इसमें बदलाव लेकर आया जाए और इस समय पर आपको बता दूं कि जो नो डिटेंशन पॉलिसी है उसे हटा दिया जाएगा। इसे हम आपको काफी डिटेल में बताएंगे कि यह पॉलिसी थी क्या, कब लेकर आया गया, कब कानून में संशोधन किया गया और अभी इसे क्यों बदला जा रहा है।तो आपको काफी कुछ सीखने को मिलेगा। चलिए शुरू करते हैं।
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हुआ क्या है ?
सबसे पहले देखते हैं कि यहां पर हुआ क्या है? देखिए हाल ही में मिनिस्ट्री आफ एजुकेशन के द्वारा एक सूचना लेकर आई गई जिसमें यह कहा गया सभी स्कूल जिसमें केंद्रीय विद्यालय आते हैं और जवाहर नवोदय विद्यालय भी आते हैं। तो केंद्र सरकार के अंदर आने वाली सभी स्कूलों में बताया जा रहा है कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अगर आगे की कक्षा में प्रवेश करना है तो उन्हें पांचवी और आठवीं पास करना पड़ेगा। यहां ऐसा बोला जा रहा है कि कोई छात्र इस समय आठवीं में पढ़ रहा है और वह नवमी में जाना चाहता है तो उसे वहां जाने के लिए आठवीं कक्षा पास करना ही पड़ेगा वरना वह नवमीं में नहीं जा पाएगा। इसी तरह अगर वह बच्चा पांचवी में है तो छठी क्लास में जाने के लिए उसे पांचवी कक्षा पास करना ही पड़ेगा तभी वह छठी में जा सकता है।
अब मान लीजिए वह बच्चा फेल हो जाता है। वैसे में उस बच्चों को 2 महीने का मौका दिया जाएगा। इसके बाद वह फिर से परीक्षा दे सकता है और अगर इसमें भी वह फेल होता है तो उसे उसी कक्षा में रोक लिया जाएगा। तब वह आगे नहीं जा पाएगा। अब देखिए केंद्र सरकार का यह निर्णय 5 साल के बाद आ रहा है क्योंकि 5 साल पहले 2019 में जो राइट टू एजुकेशन है, उसमें चेंज लेकर आया गया था। लेकिन फिर भी केंद्र सरकार ने नो डिटेंशन पॉलिसी हटाई नहीं थी। यहां पर राइट टू एजुकेशन में जो बदलाव किया गया था उसमें केंद्र और राज्य दोनों को यह बता दिया गया कि आप चाहे तो अपने यहां नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर सकते हैं। पहले ऐसा नहीं था लेकिन यह बदलाव 2019 में लेकर आया गया।
नो डिटेंशन पालिसी क्या है ?
अब आपको बताते हैं कि नो डिटेंशन पॉलिसी क्या है? आपको याद होगा 2009 में राइट टू एजुकेशन एक्ट आया था जिसका उद्देश्य निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दिया जाना था 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों। को ऐसे में तब 14 वर्ष शिक्षा निशुल्क थी और उसी के अंदर एक सेक्शन 16 था जिसमें बोला गया कि किसी भी बच्चे को एक्सपेल्ड नहीं किया जा सकता। मतलब उसे रोक नहीं जा सकता है किसी भी क्लास में। इसका मतलब यह हुआ कि वह बच्चा पांचवी और आठवीं पास करके ही बाहर निकल सकता था। आपको अपने आसपास सुनने को मिलेगा कि जो आपके यहां काम करने आते हैं, उनसे सुनने को मिलेगा कि उनका बच्चा आठवीं पास है। समस्या उसके बाद शुरू होने लगती है। सोचिए की आठवीं कक्षा कोई बच्चा पास कर लिया मगर उसे पिछला कुछ भी नहीं आता तो वह नवीं का पाठ्यक्रम कैसे समझ पाएगा? तो ऐसी समस्या तब खड़ी होती है।
इसे लेकर क्यों आया गया ?
सवाल है कि इसे लेकर क्यों आया गया? मतलब जो 2009 में राइट टू एजुकेशन आया तब यह बोला गया कि अगर किसी बच्चे को उसके बचपन में ही फेल कर देंगे तो वह कहीं ना कहीं हतोत्साहित हो जाएगा जिसकी वजह से स्कूल में बच्चों का ड्रॉप आउट काफी अधिक होने लगेगा। इसलिए नो डिटेंशन पॉलिसी लाने का मतलब था कि कम से कम हर बच्चा प्रारंभिक शिक्षा तो हासिल कर ही लेगा। मतलब वह आठवीं तो पास कर ही ले और उसे तब तक फ़ैल नहीं किया जाए क्योंकि हमारे यहां अच्छी एजुकेशन सिस्टम नहीं है। इसी की वजह से तब नो डिटेंशन पॉलिसी लेकर आई गई जिससे कोई बच्चा फेल न हो।
यहां पर एक कॉन्सेप्ट लेकर आया गया था CCE ( Continuous and comprehensive evaluation )। इसका मतलब यह है की आठवीं तक बच्चे का सिर्फ समझ विकसित किया जाएगा जिसमें हर कक्षा में परीक्षा होती रहेगी लेकिन किसी को फेल नहीं किया जाएगा जिससे बच्चा बाहर की दुनियादारी भी सीखेगा तो इसको लाने का उद्देश्य ऐसा ही था।
आरटीई में संशोधन की जरुरत क्यों हुई ?
अब सवाल यह है कि जो राइट टू एजुकेशन एक्ट 2014 से इसको लेकर काफी चर्चा होने लगती है और 2017 में एक बिल लेकर आया जाता है जिसमें सेक्शन 16 में बदलाव की जाती है। सेक्शन 16 में बोला गया कि किसी बच्चे को फेल नहीं कर सकते हैं। इस बिल में कहा गया की क्लास पांचवी और क्लास आठवीं में अनिवार्य रूप से परीक्षा होंगे और अब से सभी को परीक्षा को पास करना पड़ेगा। अगर कोई बच्चा फेल हो जाता है तो उसको 2 महीने बाद फिर से एग्जाम देना होगा और उसमें उसे पास करना ही होगा आगे बढ़ाने के लिए। यह अधिकार केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही दे दी गई कि इसे आप अपने राज्यों और केंद्र सरकार के अंदर जितनी भी विद्यालय आते हैं वहां पर लागू कर सकते हैं। यहां पर यह भी बोला गया कि कोई राज्य अगर चाहे तो वह नो डिटेंशन पॉलिसी को हटा भी सकते हैं है।
आपको बता दूं कि लोकसभा में जिस बिल को पेश किया गया था उसमें जो इसका उद्देश्य बोला गया “नो डिटेंशन पॉलिसी” हटाने का ,वह यह था कि जो सेक्शन 16 है उसकी वजह से ठीक से रिजल्ट नहीं आ पा रहा है। मतलब यह बच्चे के लिए लाभदायक नहीं लगता है। बच्चे पिछली कक्षा में क्या सीखा उसके बिना ही आगे क्लास में बच्चों को भेज दिया जाता है। इससे बच्चे का नुकसान होता है। कई बार देखा जाता है कि बच्चा स्कूल आता भी नहीं लेकिन फिर भी उसे पास कर दिया जाता है। तो जो एक उद्देश्य था सेक्शन 16 लाने का, वह कहीं ना कहीं कमजोर पड़ जाता है। फिर आगे इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी को रेफर कर दिया गया और फिर इस बिल को संसद में 2019 में पास कर दिया गया। तो 2019 में ही यह बिल पास हो जाता है मगर केंद्र सरकार अब निर्णय लिया है कि वो अपने अंदर में जितने भी स्कूल आते हैं वहां पर नो डिटेंशन पॉलिसी हटा रहे हैं।
पक्ष और विपक्ष में लोगों की राय की क्या राय है ?
कुछ लोग कहते हैं कि स्कूल में नो डिटेंशन पॉलिसी लेकर आना चाहिए लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि इसे हटा देना चाहिए। तो जो इसके खिलाफ है उनकी अगर बात करें तो जो डेटा संग्रह किया गया है वह एक एनजीओ से है। इनका एक वार्षिक रिपोर्ट आता है जिसमें उनका कहना है कि नो डिटेंशन पॉलिसी आने से लर्निंग लेवल में कमी आई है क्योंकि उनका कहना था कि अगर एग्जाम को कंपलसरी कर दिया जाए तो उससे कहीं ना कहीं बच्चे उत्साहित रहेंगे। उसको पढ़कर एग्जाम देंगे। इससे उनकी सीखने की क्षमता बढ़ जाएगी लेकिन जब बच्चे यह समझ जाएंगे कि वह फेल हो ही नहीं सकते तो कुछ भी वह सीखेंगे ही नहीं जिससे लर्निंग लेवल में कमी आएगी। इसके अलावा 2010 से 2013 के बीच पांचवी कक्षा के बच्चे से दूसरी क्लास का सवाल पूछा गया तो उसे जितने बच्चे पहले पढ़ पाते थे उसमें 10% की कमी आई थी। तो इसे पता चलता है कि लर्निंग लेवल घट रहा था। इसी वजह से बच्चे प्राइवेट स्कूल की तरफ माइग्रेट कर रहे थे। तो इसलिए बोला गया कि यहां पर नो डिटेंशन पॉलिसी को हटा देना चाहिए। तो एक तरह से जो संदेश समाज में जा रहा था कि आपको यहां पर कोई टेंशन ही नहीं लेनी है क्योंकि आप पास हो ही जाओगे। इसी की वजह से बच्चों में भी एग्जाम को लेकर मोटिवेशन लेवल लो रहता था।
लेकिन कहीं ऐसी वजह भी है जिसको देखकर एक्सपर्ट कहते हैं कि नो डिटेंशन पॉलिसी आगे भी रहने देना चाहिए। कुछ कहते हैं कि यह जो बोला जा रहा है कि नो डिटेंशन पॉलिसी से बच्चों का लर्निंग लेवल कम हो रहा है, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि बच्चे सिस्टम की वजह से फेल हो रहे हैं। इसलिए सिस्टम में सुधार करने की जरूरत है। आप ही बताये की सरकारी स्कूल में ज्यादातर कौन से बच्चे जाते हैं? तो जाहिर सी बात है वहां गरीब बैकग्राउंड के बच्चे ही जाते हैं। ऐसे में हमें उन्हें और मोटिवेट करने की जरूरत है। अगर आप नो डिटेंशन पॉलिसी हटा देंगे तो बच्चा डर जाएगा और वह सीखने की भी कोशिश नहीं करेगा क्योंकि अगर वह फेल हो गया तो उससे ड्रॉप आउट नंबर्स बढ़ जाएंगे।
इसलिए बहुत से राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से उनके विचार जानने की कोशिश हुई कि आपके हिसाब से क्या सही है की नो डिटेंशन पॉलिसी को रहने देना चाहिए या हटा देना चाहिए? तो यहां पर हमारे देश में 18 राज्यों ने बोला कि नो डिटेंशन पॉलिसी को मॉडिफाई करने की जरूरत है। इसमें पंजाब और मध्य प्रदेश की सरकार बोला की पांचवी और आठवीं में बोर्ड एग्जाम लेकर आना चाहिए लेकिन कुछ ऐसे राज्य भी हैं जिनमें कर्नाटक और आंध्र प्रदेश हैं, इनका कहना है कि नो डिटेंशन पॉलिसी को रहने देना चाहिए क्योंकि उससे बच्चे कम से कम आठवीं तक की शिक्षा ले सकते हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो उससे ड्रॉप आउट नंबर्स बढ़ जाएंगे।
तो यह बड़ी चीज है यहां पर। मुझे उम्मीद है आपको इस लेख के द्वारा बहुत सी जानकारियां मिली होगी। बाकी आप बताइए कि सरकार का जो नो डिटेंशन पॉलिसी हटाने का निर्णय है वह सही है या नहीं ? तो आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें जरूर बताइएगा। धन्यवाद ।