Dr Manmohan singh death: मनमोहन सिंह ने कैसे भारत को दिवालिया होने से बचाया ?

मामला क्या है ?

नमस्कार दोस्तों, दोस्तों 3 जनवरी 2014 यह एक ऐसा दिन था जो प्राइम मिनिस्टर होते हुए मनमोहन सिंह जी का यह आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस था और उस समय रिपोर्टर बहुत सारे कठिन सवाल उनसे पूछ रहे थे क्योंकि तब यूपीए की सरकार के ऊपर कई घोटाले के आरोप लगे थे। ऐसे में रिपोर्टर्स ने मनमोहन सिंह जी से पूछा कि आप अपने मंत्रियों को ऐसा करने से क्यों नहीं रोक पाए? तो देखिए ऐसे में मनमोहन सिंह जी ने कहा कि “history will be kinder to me”। देखिए क्या है कि भले ही मनमोहन सिंह जी हमारे देश में 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे लेकिन फिर भी अभी भी लोगों के दिल में बसते हैं । जब आप कभी पढ़ते हो भारत के इतिहास के बारे में तो हमेशा से जो उनका योगदान रहा है 1991 में क्योंकि जब कभी मैं भी अर्थशास्त्र पढ़ता हूं तो उस समय अगर हम भारत की आजादी के समय इकोनॉमी की बात करें तो उसको दो पार्ट में डिवाइड करके देखा जाता है।एक 1991 से पहले का भारत और दूसरा 1991 के बाद का भारत जिसमें भारत की दशा और दिशा पूरी तरह बदल गई थी। तो इसे हम आगे अच्छे से चर्चा करेंगे लेकिन मैं आपको यहां बताना चाहता हूं कि कल रात को एक बहुत दुखद घटना सामने आती है जिससे पता चलता है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह जी अब हमारे बीच नहीं रहे । 93 वर्ष की आयु में वह हमें छोड़कर चले गए।इसी को देखते हुए क्योंकि वह न सिर्फ भारत के उपलब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति थे बल्कि पूरे दुनिया में अगर आप देखें तो उन्हें दुनिया भर के लीडर्स मानते थे ।इसी को देखते हुए भारत सरकार के द्वारा 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है जिसके द्वारा अगले 7 दिन तक जितने भी देश में सरकारी ऑफिस में झंडा फहरा जाते हैं तो उसको इस समय ऊपर न रखकर झुका दिया जाता है और साथ में जो भी सरकार के द्वारा मनोरंजन के कार्यक्रम लेकर आने होते हैं उनको भी रद्द कर दिया जाता है अगले 7 दिन के लिए ।

ऐसे में यहां पर हमें उनके बारे में जानना काफी जरूरी है क्योंकि देखिए जब भी हम डॉक्टर मनमोहन सिंह जी की बात करते हैं तो वह एक जाने माने इकोनॉमिक्स टेक्नोक्रैट और साथ ही साथ भारत के लिबरलाइज्ड इकोनॉमी के आर्किटेक्ट तौर पर जाने जाते हैं ।उन्होंने भारत को उच्च विकास के रास्ते पर ले गए थे जब भारत के सबसे खराब आर्थिक दौर गुजर रहे थे तो उस समय इन्होंने भारत को उससे निजात दिलाई। यहां पर उनको एडमिरे किया जाता है ना सिर्फ अपने दोस्तों के द्वारा बल्कि उनके जो पॉलिटिकल राइवल्स हैं प्रतिद्वंदी है उनके द्वारा भी उनका काफी प्रशंसा किया जाता है।डॉक्टर सिंह की अगर हम बात करें तो खबर आती है कि कल उन्होंने दिल्ली में अपनी आखिरी सांस ली 93 वर्ष के थे ।

यह उनके निधन के बाद बोला जा रहा है कि एक युग का अंत हो गया क्योंकि जिस कार्यकाल में उन्होंने काम किया है वह अपने आप में काफी अलग था मतलब भारत ने जो वह समय देखा और आज का जो समय आप देखोगे तो शायद आपको वह एक्सपीरियंस भी ना हो जब तक अगर आपने उसे चीजों के बारे में डिटेल्स स्टडी ना किया हो। क्योंकि आज तो हमें बहुत सारी चीज दिखती है बहुत सारी चीज बाहर से मंगा लेते हैं ।काफी लिबरलाइज्ड चीज आपको इस समय देखने को मिलता है लेकिन ऐसा सिचुएशन उसे समय नहीं था क्योंकि आप सोच कर देखिए उस समय घड़ी भी किसी को लेनी होती थी तो कई महीना या कई सालों तक वेट करते थे।तो सोचिए सिर्फ एक घड़ी लेने के लिए इतना वेट करना पड़ता था। अगर गाड़ी लेनी होती थी तो आप उसका कलर डिसाइड नहीं कर पाते थे। तब बहुत लंबा वेटिंग होता था। ऐसे में भारत के वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने ग्राउंड ब्रेकिंग रिफॉर्म्स अपनाये थे और कहीं ना कहीं उन्होंने भारत को दिवालिया होने से बचाया था ।उन्होंने भारत को एक इमर्जिंग ग्लोबल पावर के तौर पर उभारा था। उनकी जो भी दूर की सोच लीडरशिप की थी वह एक तरह से मोस्ट क्रिटिकल फाइनेंशियल क्राइसिस से बाहर निकालने की थी। उन्होंने अपनी छाप कहीं ना कहीं इंडियन इकॉनमी पर छोड़ी है ।

इसमें संदेह नहीं कि जब वह वित्त मंत्री थे तो उस समय प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे। उनका भी इसमें बहुत बड़ा योगदान रहा है क्योंकि डॉक्टर मनमोहन सिंह जी कोई पॉलीटिकल बैकग्राउंड से नहीं थे और उनको क्रिटिसाइज भी किया जाता था 1991 में। लेकिन पीछे से पूरा सपोर्ट था पीवी नरसिम्हा राव का । बताया जाता है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह जी ने कई बार अपना त्यागपत्र भी दे दिया था पीवी नरसिम्हा राव जी को लेकिन पीवी नरसिम्हा राव जी ने कहा कि आप चिंता मत करिए चाहे कोई आपको कुछ भी बोले आप डरिए मत मैं आपके साथ खड़ा हूं ।तो ऐसे में दोनों की कहीं ना कहीं इंडियन इकोनॉमिक जर्नी में कंट्रीब्यूशन है। लेकिन यहां जब हम स्पेशली बात कर रहे हैं डॉक्टर मनमोहन सिंह जी की तो भारत कई वर्षों से संरक्षणवाद की नीति को अपना रहा था ।तो उसको कहीं ना कहीं इसने अब पीछे छोड़ दिया है।जब हमारा विदेशी मुद्रा भंडार गिर रहा था ,इन्फ्लेशन लगातार बढ़ रहा था ,राजकोषीय घाटा काफी उच्च हो गया था तो उसे समय देश की स्थिरता को खतरा था क्योंकि जब आपकी इकोनामिक कंडीशन वीक होती है तो चारों तरफ से खतरा मंडराने लगता है ।तो उनकी जो स्ट्रेटजी थी की उन्होंने हमें सावरेन डिफॉल्ट होने से बचाया।सावरेन डिफॉल्ट का मतलब होता है कि मान लीजिए भारत सरकार ने कोई ऋण लिया है और उसको हम पेमेंट कर पा रहे हैं कि नहीं। क्योंकि अगर हमने डॉलर में लिया है तो हमें डॉलर में ही पे करना होगा लेकिन अगर हमारे पास डॉलर ही नहीं बचा है तो क्या करेंगे ? ऐसे में वह बीता समय बहुत मुश्किल था हमारे लिए।

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बोल्ड रिफॉर्म्स

यहां पर कई बोल्ड रिफॉर्म लेने पड़े ।हमारा फॉरेक्स रिजर्व एकदम निम्न स्तर पर आ गया था जो आजकल हम बात करते हैं ना कि पाकिस्तान की ऐसी हालत है श्रीलंका की ऐसी हालत है तो वैसी सिचुएशन उसे समय की थी। उसे समय हमारे पास सिर्फ 10 से 15 दिन का ही रिजर्व बचता जिससे हम क्रूड ऑयल और बाकी की जरूरत है पूरा कर सकते थे ।लेकिन वहां से जो स्टेप्स किया गया डॉक्टर मनमोहन सिंह जी के द्वारा वह का भी ले तारीफ थी ।यहां पर सरकार ने जो डीवैल्युएशन है रूपए का, वह न सिर्फ एक बार बल्कि दूसरी बार जुलाई में भी गिराया था कि हमारा एक्सपोर्ट कॉम्पिटेटिव हो सके ।जिससे हम जितना ज्यादा एक्सपोर्ट करेंगे उतना ज्यादा हम डॉलर कमाएंगे । इसके अलावा उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया वह था रिजर्व बैंक आफ इंडिया का जिसमें 47 टोन्स गोल्ड आईएमएफ के पास देंगे जिससे कि हमें पैसा मिल सके। इसी की वजह से हमें एक पुश अप मिला कि हम उस पैसे का सही इस्तेमाल कर पाए।

बजट में सुधार

आपको याद होगा 1991 में जब कांग्रेस पार्टी की सरकार थी जिसमें पीवी नरसिम्हा राव प्राइम मिनिस्टर बनते हैं और मनमोहन सिंह जी को वित्त मंत्री बनाया जाता है और तुरंत बजट पेश करना था । तब 24 जुलाई को 1991 का बजट आया था। देखिए वह सिर्फ बजट नहीं था तो एक फाइनेंशियल प्लान था जो भारत की फ्यूचर इकोनामी का ब्लूप्रिंट था । उसमें लाइसेंस राज को तोड़ा गया था । लाइसेंस राज एक ऐसा समय था जब कुछ ही लोगों को लाइसेंस मिलता था उसे प्रोडक्ट को बनाने के लिए । यहां पर डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का जो बजट था उसने हमारी जो इकोनामिक एनवायरमेंट है उसे स्वतंत्र कर दिया मतलब जो कहते हैं ना की जंजीरों से झगड़ा हुआ तो उसको यहां पर तोड़ा है । इसी के साथ-साथ फॉरेन इन्वेस्टमेंट को लाने की अनुमति दिया है । 20 जुलाई का जो उनका बजट स्पीच था उसमें उन्होंने यह बात माना था की जो मैं रिफॉर्म्स लाने जा रहा हूं यह बहुत डिफिकल्ट है । ऐसा नहीं है कि हमारी जो जर्नी है बहुत आसान होने वाली है । उन्होंने इस बात को कहा था कि यह बहुत कठिन होगा लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक मेजर इकोनामिक पावर बनने जा रहा है आने वाले समय में और यह सबको एक्सेप्ट करना होगा । यह उनका बहुत ही बोल्ड स्टेटमेंट था ।

क्या-क्या बदलाव लेकर आये ?

1st change

मैं आपको यहां पर कुछ चीज बताता हूं जो उन्होंने अपने बजट में कुछ चीज बोली थी उसका क्या असर हुआ था उसको मैं अब एक-एक करके बताता हूं । 1991 91 से पहले हमारा जो घरेलू बाजार था उसमें भी कंपटीशन नहीं था मतलब आप विदेशी बाजार में कंपटीशन तो छोड़ ही दीजिए अगर आप घरेलू बाजार में भी कंपटीशन को देखें तो इकोनॉमिक एक्टिविटी पूरी तरह बर्बाद हो गई थी । तो इसको देखते हुए जरूरी था कि यहां पर उदारीकरण लेकर आया जाए । इसमें हर किसी को मौका दिया जाए जिसमें कोई भी व्यक्ति अगर अपना बिजनेस स्टार्ट करना चाहता है तो वह आराम से कर सके । तो तब लाइसेंस राज को एक तरह से खत्म कर दिया गया और कंपनियों को बोला गया कि आप पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगेगा । पहले सरकार इन कंपनियों को प्रतिबंध लगा देती थी जैसे कि आप अगर जूता बना रहे हो तो सरकार रहेगी कि आप 100 से ज्यादा जूता बना ही नहीं सकते । तो आप सोच सकते हो इस तरह की चीज तब हुआ करती थी । तो मनमोहन सिंह जी ने इसको यहां पर तोड़ दिया था ।

2nd change

दूसरा जो बदलाव हुआ था वह यह की मान लो भारत के अंदर जो घरेलू उद्योग है जो कुछ भी बना रही है जो हमें दे रही है ₹1000 का । तो हमारी मजबूरी थी कि हमें ₹1000 में उसे खरीदना ही पड़ेगा भले ही वह सामान ₹100 में विदेश में मिल रहा है । तो तब यह हमारे यहां नहीं था क्योंकि सरकार इंडियन मार्केट में उसे नहीं लेकर आई थी । तो सरकार ने कहा कि देखिए हमारे जो घरेलू उद्योग है वह भी फाइट कर सकती है बस इन्हें अवसर देना चाहिए क्योंकि जब तक कंपटीशन नहीं होगा तब तक हमारी इंडस्ट्री कॉम्पिटेटिव नहीं होगी और वह ज्यादा पैसे लेकर चीज बेचेंगे । ऐसे में अंत में सरकार ने चीजों को इंपोर्ट को करना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से अंत में यह नतीजा निकला की भारत में भी बाजार कॉम्पिटेटिव बनने लगे ।

3rd change

अगली जो इनकी इंपॉर्टेंट चीज थी वह था फॉरेन इन्वेस्टमेंट । भारत 1991 से पहले फॉरेन इन्वेस्टमेंट की अनुमति ही नहीं देता था । आप सोच कर देखिए कि जब आप फॉरेन इन्वेस्टमेंट ही नहीं लाओगे तो आपको कैपिटल कहां से आएगा ? देश की तरक्की कैसे होगी ? जीडीपी कैसे बढ़ेगी ? आज के समय में हम बात करते हैं ना कि देखो फड़ी इतना आ रहा है ,देखो इतना FII आ रहा है । इन चीजों पर आज भी बहुत ज्यादा ध्यान होता है क्योंकि यह बहुत ज्यादा इंपोर्टेंट होता है । इसलिए उस समय सरकार ने इसे लेकर आया था । तब फॉरेन कंपनियों को देश में लेकर आया कि आप हमारे देश में लिए आइये, यहां पर अपना सेटअप बनाएँ जिसमें आपको 100% सब्सिडियरी का स्टेक मिलेगा। तो आप चाहे तो उसे कुछ सेक्टर के अंदर ले सकते हैं।

4th change

उसके बाद यहां पर जो बड़ा चेंज था वह यह था कि सरकार जो पब्लिक सेक्टर यूनिट्स (PSU) हैं, वह उस समय बहुत कमजोर हो गई थी । ऐसे में यहां पर इसका डिसइनवेस्टमेंट स्टार्ट होता है की PSU को और अच्छा हम कर सकते हैं उसमें से कुछ स्टेट को पब्लिक कर दिया जाए और उसे मार्केट में लेकर आया जाए । तो इससे उसे और सक्षम बनाया जाएगा और जो पीएसयू यहां पर अच्छा काम नहीं कर पा रही उसे बेचने का काम स्टार्ट किया जाए । ऐसे में बताया जाता है कि जो खराब PSU उस समय चल रही थी वह बहुत ज्यादा हेल्पफुल नहीं हुआ लेकिन जो डिश इन्वेस्टमेंट का प्रोसेस है वह स्टार्ट हुआ क्योंकि PSU बहुत ज्यादा लॉस में जा रही है चाहे सरकार उसकी फंडिंग कर रही है। तो उसका कोई फायदा नहीं है । कोई भी कंपनी जो होती है वह प्रॉफिटेबल होना चाहिए तो इसलिए यह एक बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है । तो यहां पर यह चेंज लेकर आया गया ।

5th change

अगला जो इंपॉर्टेंट चीज है वह यह की देखिए हमारे देश में जो कैपिटल मार्केट है जैसे की कोई कंपनी है , उसको पैसा उठाना है तो आपको पता ही है कि आज के समय में उसके लिए कंपनियां आईपीओ लेकर आया करती हैं । तो यह सब कैपिटल मार्केट के लिए बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि जब कैपिटल मार्केट स्ट्रांग होगा तभी यह कंपनियां मार्केट से पैसा उठा पाएंगे और देश में इन्वेस्टमेंट भी बढ़ेगा । तो यहां पर जो सेबी है उसको और ज्यादा पावर दी गई । उसके लिए कानून लेकर आया गया क्योंकि पहले जो सेबी बनाया गया था उसे एग्जीक्यूटिव पावर से बनाया गया था । लेकिन बाद में एक कानून पास किया गया 1992 का SEBI ACT, जिससे मार्केट को और ज्यादा रेगुलेट किया जा सके और मॉनिटरिंग की जा सके । तो इससे हमारा कैपिटल मार्केट मजबूत हुआ ।

6th change

अगला जो बड़ा चेंज था वह यह था कि हमने अपने आप को आईडेंटिफाई किया कि हमारी शक्ति क्या है । ऐसे में सॉफ्टवेयर मार्केट में हमें काफी ज्यादा पोटेंशियल दिखे जिसमें हम चीजों को एक्सपोर्ट कर सकते हैं ।इसमें सरकार ने इनकम टैक्स के अंदर कुछ छूट दी कि अगर आप सॉफ्टवेयर को एक्सपोर्ट करते हो तो उसमें आपको टैक्स की छूट मिलेगी ।तो इससे हमारा जो सॉफ्टवेयर मार्केट है उसमें हमें अपॉर्चुनिटी मिल गया । हमारे कीमत सस्ते हो गए और हम ज्यादा से ज्यादा एक्सपोर्ट करने लग गए जिसकी वजह से आज भारत सबसे बड़ा आईटी सेक्टर में ग्लोबल पावर बना हुआ है ।

7th change

फिर सबसे आखरी में जो चेंज था वह था टैक्सेशन । 1980 में एक ऐसा पॉइंट आ गया था कि अगर आप टैक्स पे करोगे तो आपको 97% टैक्स पे करना पड़ता था ।आप सोच कर देखें कि अगर आप ₹100 कमा रहे हैं तो उसमें से 97 रुपए टैक्स पे करना पड़ता था । ऐसे में आपको क्या लगता है कि कोई टैक्स पे करना भी चाहेगा ? नहीं करना चाहेगा । इसलिए जरूरी था कि टैक्स को काम किया जाए क्योंकि अगर टैक्स कम होगा तो सरकार को अंतत सही तरीके से टैक्स मिलने लगेगा। तो इसकी वजह से हमारा टैक्स जीडीपी रेशों होगी बढ़ता नजर आएगा ।

निष्कर्ष

यह सब कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे । तो यह जो बदलाव लेकर आए गए यह कहीं ना कहीं भारत का जो आने वाला समय था उसे बदल कर रख देता है । आप सोच कर देखिए कि हमारे पास विदेशी मुद्रा भंडार बच्चा भी नहीं था जिसमें हमारे पास सिर्फ एक बिलियन डॉलर से भी काम का फॉरेक्स रिजर्व था । लेकिन यही अगले 2 साल के अंदर यह 10 बिलियन से भी ज्यादा हो गया और कहीं ना कहीं हम जो दिवालियापन की तरफ जा रहे थे तो वहां पर जाने से हम बच गए । तो इसमें डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का एक बहुत बड़ा योगदान है । उन्हें कोई कभी भूल ही नहीं सकता । मैं आपको यह बता दूं कि डॉक्टर मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री तो रहे हैं और फाइनेंस मिनिस्टर भी रहे । इसके अलावा भी उनका एक बहुत बड़ा करियर रहा है अगर आप देखोगे भारत सरकार में । 1971 में उन्होंने पहली बार भारत सरकार को ज्वाइन किया था आर्थिक सलाहकार के रूप में । आगे चलकर के इकोनामिक एडवाइजर भी बने थे 1972 में । आप देखोगे मिनिस्ट्री ऑफ़ फाइनेंस में सेक्रेटरी बने ,उसके बाद डिप्टी चेयरमैन प्लानिंग कमिशन में बने , आरबीआई के गवर्नर बने के बाद यूजीसी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं , प्रधानमंत्री के एडवाइजर भी बन चुके हैं । तो उनका एक तरह से बहुत लंबा कार्यकाल रहा है । यहां पर अंततः निष्कर्ष यही निकलता है कि मनमोहन सिंह जी की जो अचीवमेंट है उसे न सिर्फ उनकी पॉलिसी को लेकर डिफाइन करना चाहिए बल्कि उनकी जो बिलीव थी भारत की डेस्टिनी में वह उनकी ग्रेटनेस को दिखाता है और भारत को एक नई दिशा में लेकर गए । तो भारत हमेशा उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा और उनका जो योगदान रहा है वह अपनी संदेह अमर रहेगा । बाकी आप क्या सोचते हैं इस विषय पर हमें जरूर बताइएगा । मैं आपसे आपका ओपिनियन जरूर जानना चाहूंगा ।

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