दोस्तों, इस समय ठंडी जरुर बढ़ी है, मगर Delhi election की तारीख की घोषणा के बाद से ही वहां का माहौल गर्म हो गया है। वोट पाने के लिए कैश बांटा जा रहा है। यहां पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अतिशी ने बीजेपी पर अरविंद केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में वोट पाने के लिए कैश बांटने का आरोप लगाया है। ठेले वालों को उनके नाम प्लेट लगाकर रखने की हिदायत दे दी जा रही है, जिससे पता चल सके कि कौन हिंदू और कौन मुस्लिम है। इस तरह वहां आर्टिकल 15 की धज्जियां उड़ रही है। चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल हो रहा है, जिससे चुनाव अभियान में साम दाम दंड भेद लगाया जा रहा है।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को केजरीवाल को आशीर्वाद देते दिखाया जा आ रहा है। अब इंडिया गठबंधन भी बिखर रही है जिसमें लोकसभा चुनाव 2024 की सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी अपना समर्थन आम आदमी पार्टी को दे दिया है। अवध ओझा को इस समय मनीष सिसोदिया की सीट पटपड़गंज से खड़ा किया गया है। इस सीट से 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मनीष सिसोदिया सिर्फ 3200 सीटों से जीते थे। ऐसे में इस बार यह मुकाबला काफी अहम माना जा रहा है। दिल्ली में कांटे की टक्कर मिलने की पूरी संभावना है जिससे आम आदमी पार्टी, वर्तमान विधायकों का टिकट काटकर नए-नए उम्मीदवारों को मौका दे रही है। कहा जा रहा है इस बार आम आदमी पार्टी 20 विधायकों का टिकट अब तक काट चुकी है। अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद अतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली विधानसभा 2025 में बीजेपी, कांग्रेस और आप में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा और ऐसा क्या है कि दिल्ली की जनता लोकसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर BJP को जीता देती है लेकिन विधानसभा में यही जनता आम आदमी पार्टी की तरफ हो जाती है। आज के ब्लॉग में हम इसका कारण समझेंगे। किस सीट पर पिछला जातीय समीकरण क्या था और अबकी बार किसके लिए रास्ते आसान होगी और किसके लिए कठिन, उसे भी आपको बताएंगे। हर चुनाव का नरेटिव लेकर लोगों के बीच जाना होता है, जिसमें आम आदमी पार्टी के पहले चुनाव में “एक सवाल और एंटी करप्शन” का नेरेटिव था। दूसरे चुनाव में “लगे रहो केजरीवाल” का स्लोगन चला और इस बार का नारा है “फिर लाएंगे केजरीवाल”। लेकिन हम आपसे पूछना चाहते हैं क्यों और कैसे दिल्ली में केजरीवाल आएं , तो उसे आपको इस ब्लॉक में बताएंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

दिल्ली में कैसा राजनितिक माहौल है ?
शराब घोटाले से आम आदमी की छवि इतनी धूमिल हो गई है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पटपड़गंज को छोड़ जंगपुरा से चुनाव लड़ना पड़ रहा है जबकि इस बार पटपड़गंज से अवध ओझा को टिकट दिया गया है। जेल की सजा काट रहे मनीष सिसोदिया लगभग डेढ़ साल से अपने क्षेत्र में नहीं दिखे हैं, जिसके बाद पार्टी एक रणनीति के द्वारा ऐसा फैसला लिया है। जंगपुरा में पिछली बार जीत का मार्जिन 16000 था, मगर उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र पटपरगंज में जीत का अंतर सिर्फ 3000 ही था। इसके कारण सिसोदिया के पास लोगों के बीच जाने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। उन्हें पूरी दिल्ली में पार्टी के लिए प्रचार करना है। ऐसे में पार्टी उनके लिए ऐसी सीट चुनी है जहां से उनको आगे की राह साफ दिख रहा हो।
2022 की एमसीडी चुनाव के नतीजे को देखें, तो सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी को हार मिली थी जिसमें पटपड़गंज की चार में से सिर्फ एक वार्ड में उन्हें जीत मिल पाई। इससे पहले 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में मनीष सिसोदिया सिर्फ 3200 वोटो से ही जीत पाए थे। सिसोदिया को तब 70163 वोट मिले, वहीं भाजपा उम्मीदवार रविंद्र सिंह नेगी को 66956 वोट मिले थे। यह वही वीरेंद्र सिंह नेगी है, जो ठेले वाले से उनका नाम और धर्म पूछते रहते हैं। अब जैसी जिसकी सोच, वह वैसा ही प्रचार करता है। बीजेपी का चुनाव प्रचार धर्म पर आधारित माना जाता रहा है। लेकिन चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के नेता अपने पुराने मुद्दों के साथ आज भी लोगों के बीच पहुंच रहे हैं जिसमें चाहे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर उनके नाम से स्कॉलरशिप की घोषणा हो या निशुल्क बिजली, पानी और इलाज की बात हो।
सीलमपुर और पटेलनगर विधानसभा क्षेत्र चर्चा में क्यों ?
अब 2 विधानसभा सीट की काफी चर्चा हो रही है। हालांकि यह बहुत ज्यादा चर्चित तो नहीं है, मगर यहां पर तो अलग तरह का नाटक हो रहा है। आम आदमी पार्टी अब बीजेपी के नेताओं को टिकट देना शुरू कर दिया है और पटेल नगर से उन्होंने भाजपा के पूर्व नेता प्रवेश रतन को टिकट दिया है। जबकि दूसरी तरफ सीलमपुर के आप विधायक, पार्टी छोड़कर कांग्रेस में चले गए हैं और वह अब कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करती है और जब किसी समुदाय की रक्षा की बात आती है तो पार्टी चुप्पी साथ लेटी है। इसके बाद AAP सीलमपुर से चौधरी जुबेर अहमद को प्रत्याशी बना दिया है। यह पूर्व कांग्रेस विधायक मतीन अहमद के बेटे हैं।
आम आदमी पार्टी के सामने कितनी चुनौती है ?
आम आदमी पार्टी इस बार हर वह तरीका अपनाएगी जो उसके पास हो या खिलाफ हो और इसके अपने कारण है। एंटी इनकंबेंसी तक तो ठीक है, मगर उसके बाद आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों का कैसे सामना करेगी, वह एक बड़ा सवाल है। आप क्या मानते हैं कि भाजपा ने जिस भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर आम आदमी के नेताओं को जेल भेजा, क्या उसका कोई असर नहीं पड़ेगा? यहां पर दिल्ली शराब नीति मामले से लेकर जल बोर्ड, स्कूल कंस्ट्रक्शन, मुख्यमंत्री आवास नवीनीकरण मामले में घोटाले के आरोप लगे हैं। इसके बाद अरविंद केजरीवाल, निश्चित मनीष सिसोदिया, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और संजय सिंह घोटाले के आरोप में जेल के हवा खा चुके हैं। सितंबर में AAP नेता अमानतुल्लाह खान को प्रवर्तन निदेशालय मनी लांड्री के केस में गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी दिल्ली वक्फ बोर्ड में भर्ती और दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी को पट्टे पर देने में अनियमितताओं को लेकर की गई थी। 2024 के शुरुआत में उपराज्यपाल ने आरोप लगाए थे कि मोहल्ला क्लीनिक में फर्जीवाड़े हो रहे हैं। बाद में सीबीआई ने भी इसकी जांच की थी। ऐसे में इतने आरोप का आम आदमी पार्टी पर असर तो पड़ेगा ही और उनके लिए रास्ता कठिन होने वाली है। भ्रष्टाचार के आरोप के अतिरिक्त पिछले पांच वर्षों में दिल्ली सरकार की उपराज्यपाल के साथ झड़प और बीजेपी के साथ जो कुछ चला है, उसका नुकसान रोक पाना AAP लिए बड़ी चुनौती होगा। अगर आप के सोशल मीडिया को देखें तो वहां पर सिर्फ बीजेपी पर हमले हो रहे हैं, कानून व्यवस्था को लेकर अमित शाह पर निशाना साधा जा रहा है, जबकि कहीं पर भी पार्टी में पॉजिटिव कैंपेनिंग नजर नहीं आ रही। बिजली पानी और शिक्षा तो निशुल्क पहले से ही है, मगर इसके अलावा कुछ भी नया नहीं है।
लेकिन कुछ चीज आम आदमी पार्टी के पक्ष में भी होती नजर आ रही है। पहली यह की कांग्रेस दिल्ली में अब तक नहीं दिखी है। अब तक कांग्रेस पूरी तरह आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गई है। एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रति मुस्लिम वोटर की नाराजगी दिखाई दी, जिसका फायदा फिर से कांग्रेस को मिल सकता है। इसके कारण एमसीडी चुनाव में आम आदमी को उतना वोट नहीं मिल पाया था जितना उन्हें मिल सकता था। ऐसे में अगर दिल्ली विधानसभा में मुकाबला आम आदमी वर्सेस बीजेपी हुआ तो उससे मुस्लिम वोट फिर से आम आदमी की तरफ शिफ्ट हो जाएंगे। लेकिन अगर कांग्रेस इस द्विपक्षीय मुकाबले को खत्म कर दिया तो कांग्रेस आम आदमी के मुस्लिम वोट काट सकती है।
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एंटी इनकंबेंसी के तीन चरण होते हैं जिसमें पहले लीडर के खिलाफ होता है यानी मुख्यमंत्री के खिलाफ लोगों में नाराजगी होती है। दूसरा सरकार और उसके मंत्रियों के प्रति लोगों में गुस्सा होता है और तीसरा विधायकों के खिलाफ गुस्सा होता है। इनमें MLA के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी स्वभावीक है जिसका समाधान पार्टी मौजूदा चेहरे की जगह नए चेहरे को उतार कर जनता के बीच एक पॉजिटिव मैसेज देकर कर देती है, जिसमें उन्हें सफल होने के ज्यादा चांसेस रहते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी ने करीब 20 विधायकों के टिकट काटे थे, मगर मुख्यमंत्री को बदलना कठिन हो जाता है लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी ऐसा करने की कोशिश कर रही है। यहां पर मनीष सिसोदिया की सीट जाने माने टीचर अवध ओझा को दे दी गई है। इससे लगता है कि अब उन्हें ही शिक्षा मंत्रालय मिल जाएगा। इसके अलावा मुख्यमंत्री भी बदल दिया गया है मगर अतिशी के भाव भाव से लगता है कि वह सिर्फ औपचारिक मुख्यमंत्री है, जबकि आज भी पार्टी के सब कुछ केजरीवाल ही है। इस चुनाव को भी आम आदमी पार्टी केजरीवाल के ही चेहरे पर लड़ रही है और किसी भी पोस्टऱ में अतिशी नहीं नजर आ रही। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से प्रचार में भी सिर्फ केजरीवाल नजर आते हैं। इससे इस सवाल का जवाब क्लियर है कि आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन होगा।
दिल्ली की जनता भी बड़ी अजीबोगरीब है !
दिल्ली की जनता लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ हो जाती है, जबकी विधानसभा चुनाव में आम आदमी के साथ हो जाती है। इसके बहुत से कारण हैं । 2014 की लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली की सातों सीट जीत जाती है, जिसमें उनको 46% वोट मिला था। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा फिर से दिल्ली की सभी लोकसभा सीट जीत जाती है और इस बार उन्हें 57% वोट मिला लेकिन एक साल बाद दिल्ली में 2015 और 2016 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तो उसमें दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी को बहुमत दिया। उसमें बीजेपी दहाई अंक की सीट भी नहीं ला पाई थी। आम आदमी पार्टी को 2015 और 2020 दोनों विधानसभा चुनाव में 54-54% मत प्राप्त हुआ। 2020 विधानसभा में आम आदमी को 70 सीटों में 62 पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा सिर्फ 8 सीट ही जीत पाई। उसमें बीजेपी को करीब 39% वोट मिला था। लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 54% वोट पाकर सभी सातों सीट जीत ली थी।
क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में पैटर्न बदलेगा ?
दरअसल आम आदमी पार्टी के 30% वोट लोकसभा चुनाव में बँट जाते हैं, जिसमें 15% वोट एंटी बीजेपी है जो कांग्रेस को चले जाते हैं क्योंकि लोगों को लगता है कांग्रेस, बीजेपी को हरा सकती है। इसके अलावा जो बचे 15% वोट हैं, वह स्विंग वोट होते हैं जो कभी बीजेपी तो कभी आम आदमी पार्टी को मिल जाते हैं। पिछले चुनावों का अगर ट्रेंड देखें तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को मिलने वाला 15-15% वोट विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिल गया। कांग्रेस वाला वोट उसे मिलना ज्यादा आसान है, क्योंकि यह एंटी बीजेपी है और इसलिए यह आम आदमी पार्टी के लिए कंप्लीमेंट्री वोट का काम करता है। अगर इस बार बीजेपी को दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतना है, तो उसे 15% स्विंग वोट को आप और कांग्रेस में जाने से रोकना होगा। इस 15% में पंजाबी, पूर्वांचली, बनिया, खत्री और दलित शामिल है।
दिल्ली के वोटर का मिजाज जानने के लिए आपको कुछ पॉइंट्स बताते हैं। दिल्ली में बीजेपी के पास हमेशा 32% वोटर रहे हैं जिसमें कई बार उछाल भी देखा है मगर गिरावट नहीं हुई है। इससे पता चलता है कि यह बीजेपी के कोर वोटर है, जो हमेशा उनके साथ रहते हैं। उसके बाद आम आदमी पार्टी का वोट शेयर विधानसभा चुनाव में स्थिर हो गया है, जिसमें उसे 53 से 54% वोट मिलते रहे हैं। मगर इसका आधार कांग्रेस के वोटर हैं। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का करीब 10% वोटर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जरूर चले जाते हैं। इससे कांग्रेस का वोट प्रतिशत अचानक बढ़ जाता है। कांग्रेस के वोटर लोकसभा चुनाव में अधिक रहते हैं मगर विधानसभा चुनाव में वह आम आदमी के साथ हो जाते हैं क्योंकि बिजली, पानी, शिक्षा इत्यादि सब यहां मुफ्त है। दिल्ली में 10 से 15% वोटर फ्लोटिंग है जो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ झूलते रहते हैं। यह बाहरी वोटर है, जो यूपी-बिहार से आकर बस गए हैं और यही वोटर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ हो जाते हैं क्योंकि वह राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित हो जाते हैं जैसे हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, एनआरसी, सीएए इत्यादि
कौन-कौन से फैक्टर्स दिल्ली चुनाव के नतीजे तय करते हैं ?
जाति और धार्मिक समीकरण को देखें तो सीएसडीएस लोक नीति के अध्ययन के अनुसार 2015 में आम आदमी पार्टी को 77% मुस्लिम वोट मिला था और तब उन्हें मुस्लिम बहुल 10 सीटों में 9 पर जीत मिली। मगर 2020 में इसमें कमी आयी और यह घटकर 69 % तक आ गयी। आम आदमी पार्टी को लगता है कि कांग्रेस मजबूत हुई तो उसका वोट बँट जाएगा, जो बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है ।
दूसरी तरफ दलित वोटर एक समय कांग्रेस का आधार थे। मगर चुनाव परिणाम के अनुसार लगता है कि दलित मतदाता कांग्रेस से दूर नजर आ रहे हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी से भी कुछ दलित नेता निकलते रहे हैं।इससे आदमी पर दलित विरोधी होने तक का आरोप लगता रहता है क्योंकि का एनआरसी दंगों में आम आदमी पार्टी का जो स्टैंड रहा है उससे दलितों में नाराजगी है।
तीसरा एक फैक्टर जो है, वह यह की पूर्वांचली वोटर दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों में से 17 विधानसभा में पूर्वांचल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। इन क्षेत्रों में जीत-हार की चाभी पूर्वांचल के लोगों के पास ही होते हैं। इन विधानसभा में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार- झारखंड से संबंध रखने वाले वोटर 35 से 40% तक है। 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव में ज्यादातर पूर्वांचल वोटर का समर्थन आम आदमी पार्टी को मिला था। इसलिए इस बार भी उसे आम आदमी पार्टी अगर संवारकर रखना चाहेगी और उनका वोट पाने की पूरी कोशिश करेगी। दिल्ली चुनाव आयोग द्वारा जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की माने, तो दिल्ली की डेढ़ करोड़ वोटर में 42 से 45 लाख पूर्वांचल से हैं, जो तय करेंगे कि दिल्ली का सरकार कौन बनेगी।
दोस्तों , ये था आपका दिल्ली विधानसभा चुनाव के बारे में । आपको हमारा आर्टिकल कैसा लगा हमे जरूर बताइयेगा और मैं आपसे जानना चाहता हु की दिल्ली में किसकी सरकार आप लोग बनते देखना चाहते हैं ?