परिचय
Dowry Judgement: दोस्तों पिछले कई वर्षों से हमें बताया गया कि किसी भी विवाहित महिला से उसके ससुराल वाले पैसे की मांग करते हैं या गाड़ी की मांग करते हैं या प्रॉपर्टी की मांग करते हैं या अपनी किसी भी डिमांड को लेकर महिला पर दबाव डालते हैं कि आप अपने मायके से यह चीज लेकर आइये या वह चीज लेकर आइये। तो उसे एक तरह से उस महिला के साथ शोषण माना जाता रहा है और इसको उस शादीशुदा महिला के साथ हरासमेंट के रूप में देखा जाता है। मगर हाल ही में कोर्ट का एक जजमेंट आया है जिसमें बोला गया कि अगर किसी महिला से उसके ससुराल वाले पैसे या कोई गिफ्ट की डिमांड करते हैं, तो उसे हरासमेंट नहीं माना जाएगा। तो यह पूरा मामला क्या है, किस वजह से कोर्ट ने ऐसा कहा और इस जजमेंट में क्या है, यह सारी बातें आपको बताएंगे। चलिए शुरू करते हैं।

मामला क्या है ?
इस केस में मुंबई हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बात बोली है कि किसी भी शादीशुदा महिला से अगर उसके ससुराल वाले यह कहते हैं कि हम जो आपसे पैसे की मांग कर रहे हैं या हम जो आपसे दहेज मांग रहे हैं तो वह महिला के ससुराल वालों का उसे महिला से पैसे की डिमांड करना और उसे धमकाना कि अगर आप पैसे लेकर नहीं आते हैं तो हम आपको आपके हस्बैंड के साथ रहने नहीं देंगे। तो इस पूरे वाक्ये को ना तो मानसिक टॉर्चर और ना ही फिजिकल हरासमेंट बोला जाएगा।
दरअसल देखिए इस केस में हुआ क्या था, कि पीड़ित महिला ने पुलिस केस दर्ज कराई थी अपने पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ। जिसमें उस महिला ने बोला था की ससुराल वालों के द्वारा इन्हें टॉर्चर किया जा रहा है कि आप अपने मायके से ₹500000 लेकर आइये और उसे अपने पति को दीजिए, जिससे उसे एक स्थाई जॉब मिल जाएगी। मगर उस महिला का कहना था कि मेरे पेरेंट्स की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और उनके पास ₹500000 पैसे देने के लिए नहीं है। ऐसे में महिला ससुराल वालों को बताती है कि वह ₹500000 अपने मायके से नहीं ला सकती हैं। इसके बाद उसे महिला का कहना था की उस पर टॉर्चर होने लगता है जिसके बाद वह थाने जाकर पुलिस कंप्लेंट कर देती है।
कोर्ट ने क्या कहा ?
अब आपको बताते हैं जो बातें कोर्ट ने बोली है। कोर्ट बोला कि कोई भी शादीशुदा महिला कोर्ट में आकर सिर्फ इतना ही कह देती है कि मुझ पर अत्याचार हो रहा है और मुझे मारा पीटा जा रहा है, तो उनके सिर्फ इतना कह देने से कोर्ट आपके ससुराल वालों के खिलाफ एक्शन नहीं ले लेगा। आपको वहां बताना पड़ेगा कि आपके साथ घरेलू हिंसा हुई है तो कैसे हुई है, किसने की है, कब की है, कितने लंबे समय तक चली है। तो यहां पर आपके इतना कह देने से काम नहीं चलेगा कि मेरे साथ जुल्म हुआ है, बल्कि उसके लिए आपको सबूत भी दिखाने पड़ेंगे। यहां पर कोर्ट ने पहली बात तो यह बोली।
दूसरी बात जो कोर्ट ने बोला कि आपके ससुराल वालों ने आपसे सिर्फ ये ही कहा था कि अगर आप अपने मायके से पैसे नहीं लाएंगे तो हम आपको आपके ससुराल में रहने नहीं देंगे। लेकिन इस पर उन्होंने अब तक कुछ ऐसा तो नहीं किया है। मतलब आप पैसे नहीं ला पाएं लेकिन फिर भी आप अभी भी अपने पति के साथ रह रही हैं। अब तो सिर्फ अपनी बहू से इतना कहना कि आपके हस्बैंड के साथ रहने नहीं दिया जाएगा, अगर आप पैसे नहीं लाती हैं और इस पर आपके ससुराल वालों का कोई एक्शन ना लेना अपने आप में मानसिक या शारीरिक टॉर्चर नहीं हो सकता है। कोर्ट ने बोला है कि आपके ससुराल वाले भले ही आपसे बोला हो कि आप पैसे नहीं लाएंगे, तो आपको अपने पति के साथ रहने नहीं दिया जाएगा। मगर इसमें दोनों बातें तो हुई ही नहीं क्योंकि अब तक वह आपको सिर्फ धमकी दे रहे थे। वास्तव में तो उन्होंने आपको आपके पति से कभी भी अलग नहीं किया।
तीसरी बात कोर्ट ने बोला कि वह महिला यह बात बता नहीं सकी कि उससे ₹500000 की डिमांड कैसे और कब की गई। ऐसे में कोर्ट ने माना कि महिला झूठे आरोप में सबको फसाना चाह रही है क्योंकि उस महिला के पास कोई प्रूफ नहीं है। ऐसे में एक तो कोर्ट की यह बात यहां निकल कर आई।
पुलिस की जांच पक्षपात पूर्ण
कोर्ट ने माना कि पुलिस जिस तरह की जांच की थी, वह पक्षपात पूर्ण था। दरअसल आईपीसी का सेक्शन 498A के तहत जब कोई महिला थाने जाकर F.I.R. करवाती है तो पुलिस को उसको सही तरीके से जांच करना पड़ता है। पुलिस जांच का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि उस महिला के साथ सही में ऐसा हुआ है या वह महिला अपने ससुराल वाले को झूठे मुकदमे में फसाना चाहती है। ऐसे में पुलिस का महत्वपूर्ण रोल होता है कि अगर कोई महिला झूठे केस में पति और उसके परिवार वालों को फसाना चाहती है, तो उससे पुलिस उन्हें बचा सकती है।
लेकिन कोर्ट जब देखा है कि पुलिस जांच के नाम पर कहां कुछ किया है। जब महिला F.I.R. कराती है, तो उसके बाद पुलिस सिर्फ महिला के परिवार वालों से ही पूछताछ की। जिसमें उन्होंने बोला था कि हमारी बेटी को उसके ससुराल वालों ने खूब टॉर्चर किया है। तो यह सारी बातें को ही उन्होने अपने चार्जशीट में डाल दी। लेकिन जो बात महिला के परिवार वाले बोल रहे थे कि उसकी बेटी के साथ अत्याचार हुआ, उसको तो उन्होंने जांच ही नहीं कि उसके परिवार वाले सच या झूठ बोल रहे हैं। अब जाहिर सी बात है कि जब उस महिला को उसके परिवार वाले ने हरासमेंट किया तो पुलिस को जांच उसके ससुराल में जाकर करनी चाहिए, ना कि उसके मायके जाकर जांच करनी चाहिए। पुलिस को उसके पड़ोसियों से इस मामले को लेकर पूछताछ करनी चाहिए थी। मगर यहां पर तो पुलिस ऐसा कुछ नहीं किया और उस महिला और उसके मायके वालों से पूछताछ करके चार्जशीट तैयार कर दी। ऐसे में कोर्ट ने पुलिस जांच में गड़बड़ी बताया।
पुलिस गलत चार्जशीट तैयार की
कोर्ट ने कहा कि पुलिस की जांच का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर हुई है, तो उस पर पुलिस जांच करेगी और अगर इसमें वह पाती है कि जिस व्यक्ति के नाम पर FI.I.R. हुआ है, उसने कोई अपराध नहीं किया है क्योंकि उसके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं है तो उसको पुलिस अपने अपने हिसाब से चार्ज शीट में लिखती है। तो इससे पता चलता है कि कोई सही में अपराध किया है अथवा नहीं किया है। लेकिन कोर्ट नोटिस कर रहा है कि पुलिस सही में जांच नहीं किया और उस महिला ने जितने भी लोगों का नाम बताया उन सभी के खिलाफ चार्ज शीट तैयार कर दी गई।
ऐसे में कोर्ट ने दूसरा सवाल यह उठाया कि उस महिला ने अपने सभी ससुराल वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी लेकिन जब पुलिस अपनी जांच करके चार्जशीट तैयार की, तो क्या जांच में वह सभी लोग दोषी पाए गए जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी? मतलब कोर्ट ने नोटिस किया कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वहां रहते भी नहीं है, मगर उनके खिलाफ भी F.I.R. करवा दी गई। तो कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि आपने इनका नाम कैसे चार्ज शीट में डाल दिया और आपको ऐसा क्या सबूत इन लोगों के खिलाफ मिल गया कि इन्होंने भी उस महिला के साथ ज्यादती की है?
तो यहां पर कोर्ट बोला कि पुलिस का काम होता है कि FIR दर्ज होने के बाद चार्जशीट सिर्फ उन आरोपियों के खिलाफ तैयार की जाती है जिनके खिलाफ जांच में कडें सबूत मिलते हैं, नहीं तो एक तरह से पुलिस भी बेकार ही लोगों को परेशान कर रही है क्यूंकि जिनके खिलाफ झूठे केस कराए गए हैं उन्हें पुलिस बचा ही नहीं पा रही है। तो कोर्ट ने यहां पर सारी चीजों को देखकर माना की इस केस में उस महिला पर कोई अत्याचार नहीं हुआ है। इसके बाद कोर्ट उस महिला के ससुराल के सभी लोगों को दोष मुक्त करते हुए FIR को रद्द कर देती है।
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