परिचय
8th pay commission: दोस्तों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों के मन में लड्डू फूट रहे हैं। बहुत से लोगों ने तो गाड़ी और घर लेने की प्लानिंग भी कर ली है। अब क्या गया, तो बता देते हैं कि 16 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स के बातों में संशोधन के लिए आठवीं वेतन आयोग के गठन की मंजूरी दे दी है। लेकिन क्या आपको पता है कि इससे वेतन बढ़ाने का फार्मूला कैसे तय होता है, बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो आठवीं वेतन आयोग का फायदा नहीं ले पाएंगे और वेतन आयोग का इतिहास क्या है, तो पूरी बातें आपको इस ब्लॉग में बताएंगे। चलिए शुरू करते हैं।
वेतन आयोग क्या है ?
वेतन आयोग केंद्र सरकार के तरफ से बनाई गई एक सरकारी कमेटी होती है, जिसमें सरकार के सीनियर ऑफिसर और इकोनामिक एक्सपर्ट होते हैं। इस कमेटी का काम सरकारी कर्मचारियों के वेतन व भत्तों का सही-सही आकलन करके बढ़ोतरी करना होता है। यह कमेटी कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने के लिए अपनी सिफारिशें देती है। वैसे तो वेतन आयोग की सिफारिश केंद्र सरकार के कर्मचारी और पेंशन होल्डर पर लागू होती हैं, मगर कई वर्षों से यह ट्रेंड देखने को मिलता है कि केंद्र की तरह से कई राज्य सरकारें भी वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू कर देती है।
पहले वेतन आयोग कब गठित हुआ ?
वेतन आयोग के इतिहास की बात करें, तो पहले वेतन आयोग वर्ष 1946 में स्थापित किया गया था और इसने मई 1947 में भारत की अंतरिम सरकार को रिपोर्ट सौंप थी। आमतौर पर वेतन आयोग का गठन हर 10 साल पर होता है। अभी के केंद्रीय कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर वेतन मिल रहा है। सातवें वेतन आयोग की अध्यक्षता जस्टिस ए के माथुर ने की थी जिसकी घोषणा चार फरवरी 2014 को हुई थी और सातवें वेतन आयोग की सिफारिश 1 जनवरी 2016 से अब तक लागू है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पहले वेतन आयोग का गठन 1946 में जब गठन हुआ था, तब उस समय पर वेतन आयोग ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों की न्यूनतम बेसिक सैलरी ₹55 तए की थी जबकि उसे समय अधिकतम वेतन 2000 तक था। जब पहले वेतन आयोग की सिफारिश को लागू किया गया, तब सरकारी कर्मचारियों की संख्या करीब 15 लाख थी।
कब से काम करेगा आठवां वेतन आयोग ?
नियमों के मुताबिक वेतन आयोग को अपनी सिफारिशें देने के लिए इसके गठन की तारीख के बाद 18 महीने का समय मिलता है। इस समय चल रहे वेतन आयोग यानी सातवें वेतन आयोग 2025 के दिसंबर तक चलेगा। सरकार की माने तो आठवी वेतन आयोग की सिफारिश अगले साल 2026 से लागू किया जा सकता है। इसमें सरकार के इस फैसले का फायदा करीब 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 65 लाख पेंशन होल्डर को मिलने वाला है।
कर्मचारियों के वेतन में कितनी होगी वृद्धि ?
आठवें वेतन आयोग के गठन के बाद कर्मचारियों का वेतन कितना बढ़ सकता है, उसे जानने के लिए हमें फिटमेंट फैक्टर को समझना होगा। फिटमेंट फैक्टर वह गुणांक है, जिसके द्वारा सैलरी और पेंशन में संशोधन किया जाता है। आसान भाषा में बताएं तो आपके जो वर्तमान समय पर वेतन है उसे नए वेतन में बदलने को “फिटमेंट फैक्टर” कहा जाता है।
फिटमेंट फैक्टर कैसे काम करता है ?
सातवें वेतन आयोग के लागू होने पर जो फिटमेंट फैक्टर था, वह 2.57 था। इससे बेसिक सैलरी 7000 से बढ़कर 17990 तक हो गया था। मतलब जिन लोगों का वेतन पहले ₹7000 था, उन्हें सातवें वेतन आयोग आने के बाद 17990 रुपए मिलने लगे। अब जो आठवां वेतन आयोग लागू किया जाएगा, जिसमें कर्मचारी यूनियन और बाकी संगठन फिटमेंट फैक्टर को 2.56 से 3 के बीच रखने की मांग कर रहे हैं। अगर यह मांग मान ली जाती है तो सैलरी में 180% तक वृद्धि हो सकती है। इसके बाद आठवें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन 17990 रुपए से बढ़कर 51480 रुपए हो सकते हैं जबकि पेंशनर्स को पेंशन 9000 से बढ़कर 25740 रुपए हो सकते हैं।
कैसे तय होता है सैलरी बढ़ाने का फार्मूला ?
कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने से पहले वेतन आयोग कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी गौर करता है। इसमें महंगाई दर, इकोनामी की स्थिति, कर्मचारियों के परफॉर्मेंस और बाजार का वेतन जैसे फैक्टर होते हैं। बहरहाल कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें आठवें वेतन आयोग का लाभ नहीं मिलेगा।
किसे नहीं मिलेगा फायदा ?
सातवें वेतन आयोग के मुताबिक सिविल सर्विसेज के दायरे में आने वाले सभी कर्मचारी वेतन आयोग के दायरे में आते हैं और उन्हें देश के संचित निधि से वेतन मिलता है। वहीं पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग और ऑटोनॉमस बॉडी के कर्मचारी व ग्रामीण डाक सेवक वेतन आयोग के दायरे में नहीं आते हैं। कुछ विशेष कर्मचारी जैसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज भी वेतन आयोग के दायरे से बाहर रहते हैं। उनके वेतन में वृद्धि नियम और कानून से तय होते हैं।
कितने साल के बाद वेतन में बदलाव होते हैं ?
आमतौर पर हर 10 साल पर केंद्र सरकार कर्मचारियों के वेतन को संशोधित करने के लिए वेतन आयोग का गठन करती है। 1947 के बाद से अब तक सातवें वेतन आयोग का गठन हो चुका है। वेतन आयोग सरकार को सिफारिश देने से पहले केंद्र व राज्य सरकारों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ व्यापक परामर्श करती हैं। सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन संरचना लाभ और भत्ते तय करने में वेतन आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राज्य सरकारों के स्वामित्व में आने वाली ज्यादातर इकाइयां आयोग के सिफारिश को लागू कर देती है। सातवें वेतन आयोग के तहत वित्त वर्ष 2016-17 में खर्च में एक लाख करोड रुपए की वृद्धि देखी गई थी।
सरकारी कर्मचारी VS प्राइवेट कर्मचारी
अब तक सात वेतन आयोग का गठन हो चुका है और सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू होने से पहले आईआईएम अहमदाबाद ने सरकारी कर्मचारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की तुलना की थी। इसमें उसने पाया था कि निचले पायदान पर बैठे सरकारी कर्मचारियों का वेतन निजी क्षेत्र से ज्यादा है। इसमें अगर ड्राइवर की ही बात करें तो भी सरकारी ड्राइवर की सैलरी प्राइवेट ड्राइवर की सैलरी में दोगुना अंतर है।
साल 2015 में एक स्टडी की जाती है उसके मुताबिक तब सरकारी ड्राइवर का औसत वेतन करीब 18000 था लेकिन तब प्राइवेट ड्राइवर 8 से 9000 ही कमा पाते थे।
लेकिन सरकारी अधिकारी के सैलरी की बात करें तो इसमें कॉर्पोरेट के मैनेजर बाजी मार लेते हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश आने से पहले एक स्टडी में पाया गया की टॉप लेवल पर सरकारी अधिकारी की सैलरी 58,100 से शुरू होती है जबकि एक जॉइंट सेक्रेटरी की सैलरी 1 लाख 82000 रूपए,सेक्रेटरी की सैलरी 225000 रूपए और कैबिनेट सेक्रेटरी की सैलरी 250000 रूपए मिल रही है। लेकिन इसमें बड़ी बात यह है कि इसमें अगर वेतन-भत्तों और बंगलो को भी शामिल कर लिया जाए तो यह और भी ज्यादा हो जाता है। ऐसे में सरकारी कर्मचारी ज्यादा मजे में रहते हैं।
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Badiya